जो लोग यह समझते हैं कि भगवान समस्त प्राणियों और पदार्थों के अधिष्ठान हैं, सब के आधार हैं और सर्वात्म भाव से भगवान भजन-सेवन करते हैं, वे मृत्यु को तुच्छ समझकर उसके सिरपर लात मारते हैं अर्थात उस पर विजय प्राप्त कर लेते हैं।
जो लोग भगवान से विमुख है वह चाहे जितने बड़े विद्वान हो उन्हें भगवान कर्मों का प्रतिपादन करने वाली श्रुतियों से पशुओंके समान बांध लेते हैं।
जो लोग भगवान के साथ प्रेम का संबंध जोड़ सकते हैं वह न केवल अपनेको बल्कि दूसरोंको भी पवित्र कर देते हैं अर्थात जगत के बंधन से छुड़ा देते हैं। ऐसा सौभाग्य भला, भगवान से विमुख लोगों को कैसे प्राप्त हो सकता है।
भागवत महापुराण स्कंध 10 अध्याय 87 श्लोक 27