*भगवान अनादि और अनंत है।*
जिसका जन्म और मृत्यु काल से सीमित है, वह भला उनको कैसे जान सकता है।ब्रह्माजी, निवृतिपरायण -सनकादि तथा प्रवृत्तिपरायण-मरीचि आदि भी बहुत पीछे भगवानसे ही उत्पन्न हुए हैं।
जिस समय भगवान सबको समेट कर सो जाते हैं,उस समय ऐसा कोई साधन नहीं रह जाता, जिससे उनके साथ ही सोया हुआ जीव उनको जान सके।क्योंकि उससमय न तोआकाशआदि-स्थूलजगत रहता है और न तो महतत्वआदि-सूक्ष्मजगत।
इन दोनोंसेबनेहुए शरीरऔरउनकेनिमित्त क्षणमुहूर्तआदि कालकेअंग भी नहीं रहते।
उस समय कुछ भी नहीं रहता। यहां तक कि शास्त्र भी भगवान में ही समा जाते हैं।
*ऐसी अवस्थामें भगवान को जाननेकी चेष्टा न करके भगवान का भजन करना हीसर्वोत्तम-मार्ग है।*